भारत में, स्वतंत्रता के समय, राजधानी दिल्ली में कोई भी चिड़ियाघर नही था | भारतीय वन्यजीव बोर्ड (अब वन्यजीवन के लिए राष्ट्रीय बोर्ड) जिसका गठन वर्ष 1951 में किया गया था, ने 1952 में अपनी पहली बैठक में देश के बड़े-बड़े शहरों में चिड़ियाघर की स्थापना करने पर जोर दिया । बढ़ती आबादी के फुर्सत के पलों एवं स्थानीय और अस्थायी आबादी के रूप में बढ़ते पर्यटकों की संख्या को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय राजधानी में चिड़ियाघर की आवश्यकता महसूस की गईं | जिसका उद्देश्य स्वस्थ और सर्वसुलभ मनोरंजन प्रदान करना था। साथ ही यह भी महसूस किया गया कि चिड़ियाघर के माध्यम से संरक्षण शिक्षा भी प्रदान की जा सकती है।
तदनुसार, दिल्ली के लिए जूलॉजिकल पार्क की स्थापना के प्रस्ताव को तैयार करने के लिए मुख्य आयुक्त की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया गया, जिसमे दिल्ली के कुछ प्रमुख प्रकृति प्रेमी एवं श्रीमती इंदिरा गांधी भी शामिल थी | श्री ई.एफ. बॉरिंग वेल्श, जो सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रूरिटी टू एनिमल के सचिव थे, उनको इस समिति के भी सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। चिड़ियाघर बनाने के उद्देश्य के लिए इस समिति ने पुराना किला और हुमाऊं का मकबरा के मध्य 9 सितम्बर 1953 को निर्माण स्थल की मंजूरी दे दी | इस समिति ने परियोजना की एक रूपरेखा भी तैयार की ।
इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार को आवश्यक वित्त प्रदान करना था और दिल्ली राज्य सरकार के माध्यम से परियोजना को निष्पादित करना था। हालांकि, दिल्ली राज्य ने इस योजना को शुरू करने में असमर्थता व्यक्त की और सुझाव दिया कि पार्क केंद्र सरकार द्वारा विकसित किया जाएगा, और उन्हें दिल्ली सरकार को चालू स्थिति में सौंप दिया जाएगा।
चूंकि वन विभाग द्वारा वन्यजीवन का प्रबंधन किया जाता था, इसलिए पहला कार्यान्वयन अधिकारी वन सेवा से लिया गया था। उत्तर प्रदेश के वन अधिकारी श्री एन.डी. बचखेती को 1 अक्टूबर 1955 को अधीक्षक नियुक्त किया गया था।
प्राणी उद्यान की विस्तृत योजना तैयार करने के लिए सिलोन जूलॉजिकल गार्डन, कोलंबो के तत्कालीन निदेशक श्री मेजर वेंनमान को आमंत्रित किया गया | उन्होंने एक प्रारंभिक योजना के साथ एक रिपोर्ट भी जमा की, क्योंकि वह निरंतर परामर्श के लिए उपलब्ध नहीं थे, इसलिए पश्चिमी जर्मनी के हैम्बर्ग में प्रसिद्ध पशु पार्क के मालिक श्री कार्ल हेगेनबेक की सेवाओं को प्राप्त करने का निर्णय लिया गया | उन्होंने प्राणी उद्यान के लिए खुले बाड़ो के निर्माण करने का सुझाव दिया |
उन्होंने मार्च 1956 में एक प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे जलमार्ग, सड़कों और पथों, पशु बाड़ों और मलजल प्रणाली का एक सामान्य नक्शा प्रदान किया गया । इस योजना को स्थानीय परिस्थितियों और भौगोलिक स्थितियों के आधार पर संशोधित किया गया, तथा भारत सरकार ने 31 दिसंबर, 1956 को इस संशोधित योजना प्रारूप को मंजूरी दे दी।
वर्ष 1959 के अंत तक, प्राणी उद्यान का निर्माण कार्य बहुत तेजी के साथ किया गया | आधे उत्तरी क्षेत्र में जलमार्गो, सड़कों, पगडंडियों, तालाबो, घाटों, हरी घास से सज्ज लॉन, वृक्षारोपण और पशुओं के लिए बाड़ो का निर्माण कर लिया गया था । दिल्ली में प्राणी उद्यान की स्थापना की घोषणा होने के साथ ही, विभिन्न राज्य सरकारों और व्यक्तियों से उपहार में जानवर आने लगे। उपहार में प्राप्त जानवरों को मुग़ल काल में अस्थायी यात्रियों के ठहरने के लिए निर्मित अजीमगंज सराय के आसपास अस्थायी बाड़ों में रखा गया था | बाघों, तेंदुए, भालू, लोमड़ी, बंदर, हिरण एवं अन्य लुप्तप्राय प्रजाति के जानवर और कई पक्षियों के संग्रह को अंततः उनके स्थायी बाड़ों में स्थानांतरित कर दिया गया । प्राणी उद्यान का औपचारिक रूप से उद्घाटन 1 नवंबर,1959 को भारत सरकार के माननीय मंत्री श्री पंजाब रावदेशमुख ने किया था। इस प्राणी उद्यान को शुरुआत में दिल्ली चिड़ियाघर के रूप में जाना जाता था । वर्ष 1982 में, देश के अन्य चिड़ियाघरों के लिए आदर्श मानते हुए इसे राष्ट्रीय प्राणी उद्यान का दर्जा दिया गया |
यहाँ राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में पक्षियों और जानवरों को उनके प्राक्रतिक आवास जैसा वातावरण प्रदान किया गया है | राष्ट्रीय प्राणी उद्यान लुप्तप्राय प्रजातियों को घर ही प्रदान नही करता बल्कि उन्हें प्रजनन का वातावरण भी प्रदान करता है ताकि जंगलों में एक बार फिर उनकी संख्या को बढ़ाने में सहयोग कर सके |